दुखद: नहीं रहे पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा, ऋषिकेश एम्स में ली अंतिम सांस

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देहरादून: चिपको आंदोलन के नेता और विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा का कोरोना वायरस के चलते निधन हो गया है. 95 वर्ष की उम्र में सुंदरलाल बहुगुणा ने ऋषिकेश एम्स में आखिरी सांस ली है.

उन्हें 8 मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था. वह डायबिटीज के पेशेंट थे. उन्हें कोविड निमोनिया भी हो गया था. कोविड आईसीयू वार्ड में भर्ती पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के फेफड़ों में 12 मई को संक्रमण पाया गया था.

उन्हें 8 लीटर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था. संस्थान के चिकित्सकों की टीम उनके स्वास्थ्य की निगरानी व उपचार में जुटी हुई थी. लेकिन आज शुक्रवार को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई और उनका देहांत हो गया.

सुन्दरलाल बहुगुणा ने पर्यावरण को लेकर उत्तराखण्ड में चल रहे चिपको आन्दोलन को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया. ‘चिपको आन्दोलन’ के कारण वे विश्वभर में ‘वृक्षमित्र’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए. बहुगुणा के ‘चिपको आन्दोलन’ का घोषवाक्य है ‘क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार. मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार’.

सुन्दरलाल बहुगुणा को सन 1981 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया. सुन्दरलाल बहुगुणा ने यह कह कर इस पुरुस्कार को स्वीकार नहीं किया कि “जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, मैं अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझता हूँ.”

पर्यावरण को बचाने के लिए ही 1990 में सुंदर लाल बहुगुणा ने टिहरी बांध का विरोध किया था. वह उस बांध के खिलाफ रहे. उनका कहना था कि 100 मेगावाट से अधिक क्षमता का बांध नहीं बनना चाहिए. उनका कहना है कि जगह-जगह जो जलधाराएं हैं, उन पर छोटी-छोटी बिजली परियोजनाएं बननी चाहिए. बताया जाता है कि जब टिहरी डूब रहा था तो उन्हें बड़ी मुश्किल से टिहरी छोड़ने के लिए मनाया गया.

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