देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड का फूलदेई त्योहार आज से शुरु हो गया है। कुमाऊं में इसे फूलदेई के रूप में मनाया जाता है। वहीं, गढ़वाल में फूल संक्राति के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हिंदू नववर्ष की शुरूआत भी मानी जाती है। महीने भर चलने वाला यह लोकपर्व वैशाखी के दिन समाप्त हो जाता है।
फूलदेई के लिए बच्चे अपनी टोकरी में खेतों और जंगलों से रंग- बिरंगे खासकर फ्योंली के फूल चुनकर लाते हैं और हर घर की देहरी पर चुनकर लाए इन फूलों चढ़ाते हैं।
फ्योंली का फूल
फ्योंली के फूल के बिना उत्तराखंड राज्य का सौंदर्य अधूरा है और साथ ही फूल संक्रान्ति का यह त्यौहार भी। बंसत ऋतु के आगमन के साथ पहाड़ के कोनो-कोनो में फ्योंली के पीले फूल खिलने लगते हैं।
लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी अपने एक प्रसिद्ध गढ़वाली गीत में गाया है, “म्यरा डांडी कांठ्युं का मुलुक जैलु, बसंत ऋतु माँ जैई।” इस गाने का अर्थ है- “मेरे पहाड़ों के देश जाओगे, तो बसंत ऋतु में जाना। जब हरे वनों में लाल बुराँस और खेतों में पीली फ्योंली खिली होगी।” फ्योंली पहाड़ में प्रेम और त्याग की सबसे सुन्दर प्रतीक मानी जाती है।
राजकुमार को हुआ फ्योंली से प्यार
पौराणिक लोककथाओं के अनुसार फ्योंली एक गरीब परिवार की बहुत सुंदर कन्या थी। एक बार गढ़ नरेश राजकुमार को जंगल में शिकार खेलते खेलते देर हो गई। रात को राजकुमार ने एक गाँव में शरण ली। उस गाँव में राजकुमार ने बहुत ही खूबसूरत फ्योंली को देखा और उसकी सुंदरता में मंत्रमुग्ध हो गया।
राजकुमार ने फ्योंली के माता पिता से फ्योंली के साथ शादी करने का प्रस्ताव रख दिया। फ्योंली के माता पिता ख़ुशी ख़ुशी राजा के इस प्रस्ताव को मान गए।
शादी के बाद फ्योंली राजमहल में आ तो गई, लेकिन गाँव की रहने वाली फ्योंली को राजसी वैभव कारागृह लगने लगा था। हर घड़ी उसका मन अपने गाँव में लगा रहता था। राजमहल की चकाचौंध फ्योंली को असहज करने लगी। फ्योंली ने इस पर राजकुमार से अपने मायके जाने की इच्छा जताई। गाँव में फ्योंली पहुँच तो गई, लेकिन इससे पहले ही फ्योंली की तबियत बिगड़ने लगी और वह मरणासन्न स्थिति में पहुँच गई।
बाद में राजकुमार ने गाँव आकर फ्योंली से उसकी अन्तिम इच्छा पूछी तो उसने कहा कि उसके मरने के बाद उसे गाँव की किसी मुंडेर की मिट्टी में ही दफना दिया जाए। इसके बाद फ्योंली को उसके मायके के पास दफना दिया गया।
जिस स्थान पर उसे दफनाया गया था, वहीं कुछ दिनों बाद पीले रंग का एक सुंदर फूल खिला। इस फूल को फ्योंली नाम दे दिया गया। कुछ लोगों का मानना है कि उसकी याद में ही पहाड़ में फूलों का यह त्यौहार मनाया जाता है।