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उत्तराखंड: राज्य में 22वां स्थापना दिवस बहुत ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. राज्य ने आज अपने 23वें साल में प्रवेश किया है. उत्तराखंड को बनाने के लिए बहुत नेताओं और आंदोलनकारियों ने अपना खून-पसीना एक किया है. कई वर्षों से इसे अलग करने की मांग उठती आ रही है. आइए जानतें हैं कि इसके इतिहास के बारे में-
उत्तराखंड के अलग होने की गाथा
- उत्तराखंड को एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने की मांग सबसे पहले सन् 1897 में उठाई गई थी. उस वक्त पहाड़ी इलाकों के लोगों ने तत्कालीन महारानी को बधाई संदेश भेजा था. इसके समझ उनके सामने लोगों ने संदेश के साथ इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और पर्यावरणीय आवश्यकताओं के अनुसार एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने की मांग रखी.
- इसके बाद सन् 1923 में जब उत्तर प्रदेश के संयुक्त राज्य का हिस्सा हुआ करता था, तब राज्य के राज्यपाल को भी अलग पहाड़ी प्रदेश बनाने की मांग को लेकर ज्ञापन सौंपा गया था. इसमें पहाड़ की आवाज को सबसे सामने रखा जा सके.
- कांग्रेस के मंच पर सन् 1928 में अलग पहाड़ी राज्य बनाने की मांग उठाई गई थी.
- इसके बाद भी इसे सन् 1930 में भी श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू का समर्थन प्राप्त हुआ.
- सन् 1946 में कुमाऊ के बद्रीदत्त पांडेय ने एक अलग प्रशासनिक इकाई के तौर पर गठन की मांग की थी.
- सन् 1950 से पहाड़ी क्षेत्र को एक अलग राज्य की मांग को लेकर हिमाचल प्रदेश के संग मिलकर जन विकास समिति के माध्यम से शुरू हुआ पहाड़ राज्य की मांग को लेकर पार्टी उत्तराखंड का गठन हो गया.
- इसके बाद तो उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग को रफ्तार मिल गई. तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की ओर से कौशिक समिति का गठन किया गया. इसके बाद 9 नवंबर 2000 में एक अलग पहाड़ी राज्य बना दिया गया.