देहरादून: आपदा की उस सुबह मैं हर रोज की तरह अपने काम पर लगा था. आज का दिन सुहावना था तभी ठंडे पानी का एक सैलाब आया. पानी का यह सैलाब हम सबको बहा ले गया. मैं एक पेड़ से टकराया जिसे मैंने पूरी ताकत से पकड़ लिया. अगले तीस मिनट में वहीं लटका रहा.
रैनी गांव के कुछ लोगों ने मुझे देखा और मेरी मदद के लिये दौड़े. उन्होंने मुझे वहां से निकाला. मैं ठंडे पानी में भीगने के कारण ठिठुर रहा था. उन लोगों ने मुझे बचाने के लिये तुरंत ही पास में मौजूद एक गर्म जलधारे में स्त्रोत में डुबा दिया. मेरा काम हमेशां पहाड़ों को काटना और जमीन को खोदना रहा मैंने कभी प्रकृति की चिंता नहीं की. पर आज उसी प्रकृति की वजह से मेरी जान बची.
यह बात, टाइम्स ऑफ़ इण्डिया से बातचीत के दौरान चमोली त्रासदी में मौत को करीब से देखकर आये 49 साल के विक्रम चौहान ने कही. विक्रम 7 फरवरी के दिन डैम पर ही मौजूद थे. उन्होंने मौत का पूरा मंज़र अपनी आँखों से देखा. फिलहाल विक्रम का इलाज चल रहा है. शिवानी आजाद की इस रिपोर्ट में विक्रम कहते हैं
मैं पेड़ों को सम्मान देता था क्योंकि वो हमें जीने के लिये ऑक्सीजन देते हैं इससे ज्यादा कुछ नहीं. पर उस दिन मैंने जिन्दगी का एक महत्वपूर्ण सबक सीखा प्रकृति में बचाने और नाश करने दोनों की ताकत है.
विक्रम का ईलाज करने वाले डॉक्टरों का कहना भी है कि विक्रम को प्रकृति ने बचाया. गांव वालों द्वारा उसे गर्म पानी के स्त्रोत में डालना उसके बचने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है. चमोली के लम्बागढ़ गांव के रहने वाले विक्रम के दो अन्य साथी फ़िलहाल लापता हैं. तीनों एक दूसरे को वर्षों से जानते थे.
विक्रम डैम में पिछले पांच साल से काम कर रहे थे. विक्रम को अब भी उम्मीद है कि अपने दोनों साथियों से वो जरुर मिलेंगे. वह कहते हैं बचाव कार्य जारी है हम उन्हें जरुर ढूंढ लेंगे. मुझे विश्वास है कि मैं अपने दोस्तों से दुबारा जरुर मिलूँगा.
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यह लेख शिवानी आजाद की टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में 12 फरवरी को छपी रिपोर्ट पर आधारित है.