देहरादून: जो जीता वही सिकंदर, यह मुहावरा उत्तराखंड की सियासत में हुए नेतृत्व परिवर्तन को लेकर फिट बैठता है। आज राजधानी देहरादून में नए मुख्यमंत्री को लेकर हलचल का माहौल है। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड में भाजपा के नए ‘सिकंदर’ पुष्कर सिंह धामी की।
एक तरफ भाजपा कार्यकर्ता और नेता अपने नए मुख्यमंत्री खैरमकदम (स्वागत) में लगे हुए हैं। वहीं सियासत के दूसरे छोर में बीजेपी अपने नाराज़ वरिष्ठ मंत्रियों को मनाने में पसीना बहा रही है।
आज हम उत्तराखंड के दो कैबिनेट मंत्रियों की बात करेंगे। इन दोनों मंत्रियों ने पिछले 4 महीनों से मुख्यमंत्री की ‘कुर्सी’ पाने के लिए अपने आप को पूरी तरह से ‘तैयार’ कर लिया था। इसके साथ इनके समर्थकों ने मिठाई भी बांट दी थी । लेकिन एक बार फिर इन्हें ‘दरकिनार’ कर दिया गया। जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और धन सिंह रावत की।
सतपाल महाराज इस बार पुष्कर सिंह धामी के चयन से इतने नाराज हुए कि उनकी दिल्ली जाने की भी चर्चा है। यहां हम आपको बता दें कि 4 महीने पहले यानी मार्च के शुरुआती दिनों में इन दोनों नेताओं ने उत्तराखंड की गद्दी पर बैठने के लिए तैयारी कर ली थी। उस समय भाजपा हाईकमान तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने का पूरा मूड बना चुका था। आलाकमान के बुलावे पर त्रिवेंद्र सिंह रावत दिल्ली पहुंचे थे। उस दौरान सतपाल महाराज और धन सिंह रावत का नाम मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे चल रहा था। इसी को लेकर इन दोनों नेताओं को पार्टी आलाकमान ने दिल्ली भी बुलाया था।
जिसके बाद चर्चा थी कि सतपाल महाराज या धन सिंह रावत उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन एक बार फिर 9 मार्च को भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने सभी को चौंकाते हुए पौड़ी के सांसद तीरथ सिंह रावत पर दांव लगा दिया। जैसे-तैसे धन सिंह रावत ने अपनी पीड़ा को छुपा गए। लेकिन सतपाल महाराज दर्द भूल नहीं पाए।
तीरथ के मुख्यमंत्री बनने से भी नाराज थे महाराज
उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन वो किस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। इसकी चिंता तीरथ सिंह रावत से ज्यादा उन नेताओं को थी, जो मुख्यमंत्री की रेस में खुद को शामिल मान रहे थे। सीएम को लेकर सीट छोड़ने पर सतपाल महाराज ने स्पष्ट रूप से बयान जारी करके कहा था कि वह अपनी ‘चौबट्टाखाल’ सीट नहीं छोड़ने वाले । इससे सतपाल और तीरथ के बीच ‘खटास’ भी सामने आई थी। तीरथ के 115 दिन के शासन में मुख्यमंत्री न बन पाने का सतपाल महाराज के अंदर ‘दर्द छलकता’ रहा।
अब एक बार फिर भाजपा के उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन की तैयारियों के बीच कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और धन सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाए जाने की उत्तराखंड के सियासी बाजार में सबसे अधिक चर्चा थी। जब पिछले दिनों तीरथ सिंह रावत को भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने दिल्ली बुलाया था। उसी दौरान सतपाल और धन सिंह रावत भी भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने दिल्ली पहुंचे थे। इन दोनों नेताओं के आलाकमान से मुलाकात करने के बाद देहरादून में सियासी अटकलें तेज थी कि इस बार सतपाल महाराज या धन सिंह मुख्यमंत्री की गद्दी संभाल सकते हैं।
इस बार खुलकर सामने आई नाराजगी
शनिवार दोपहर देहरादून में विधायक दल की बैठक के बाद धामी के नाम की घोषणा करके भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने एक बार फिर सियासी पंडितों को चौंका दिया। मुख्यमंत्री पद की दौड़ में गिने जा रहे दिग्गज नेता सतपाल महाराज, धनसिंह रावत समेत कई बड़े नाम पिछड़ गए। भाजपा हाईकमान के फैसले के बाद धन सिंह रावत एक बार फिर शांत नजर आए लेकिन सतपाल महाराज की नाराजगी खुलकर सामने आ गई।
विधायक दल की बैठक खत्म होने के तुरंत बाद कैबिनेट मंत्री सतपाल प्रदेश भाजपा कार्यालय से चले गए, इसे नेता चयन के मामले में नाराजगी से जोड़कर देखा गया। इनके अलावा केंद्रीय पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में जब पुष्कर सिंह धामी के नाम पर मुहर लगी तो कुछ वरिष्ठ विधायकों को यह फैसला रास नहीं आया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सियासी चालों ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का सपना देख रहे नेताओं को सिर पीटने पर मजबूर कर दिया है। दूसरी ओर भाजपा ने धामी पर मिशन 22 का दांव लगाकर देवभूमि की सियासत को कई संदेश भी दिए हैं।
काफी समय से यह कहा जा रहा था कि बीजेपी कुमाऊं की उपेक्षा कर रही है। पार्टी को भी कुमाऊं से ऐसे चेहरे की तलाश थी, जिसे कुमाऊं के सबसे बड़े राजनीतिक चेहरे हरीश रावत के सामने खड़ा किया जा सके। ऐसे में राजपूत समुदाय से आने वाले धामी फिट बैठते हैं। उनके सीएम बनने के बाद पार्टी में युवा चेहरों को आगे करने का संदेश गया है।
दूसरी ओर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने ‘देवभूमि में बीजेपी का कुर्सी बदल खेल’ करार देकर कड़ी आलोचना की ।