पॉलिटेक्निक बंदी क्यों : क्या सिर्फ अकुशल बेरोजगारों की भीड़ चाहती है त्रिवेंद्र सरकार ?

त्रिवेंद्र सिंह रावत
त्रिवेंद्र सिंह रावत
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इंद्रेश मैखुरी, समाजिक कार्यकर्ताइंद्रेश मैखुरी

बीते दिनों उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में करीब बारह पॉलिटेक्निक संस्थानों को बंद करने का आदेश जारी कर दिया.इससे पहले दस आई.टी.आई भी बंद किए जाने का फरमान जारी किया जा चुका है. साथ ही इन पॉलिटेक्निकों के भवनों को उच्च शिक्षा निदेशालय को हस्तांतरित करने के आदेश भी जारी कर दिये गए. बताया गया कि उत्तराखंड सरकार का इरादा बंद हो चुके पॉलिटेक्निक के भवनों में डिग्री कॉलेज चलाने का है. हालांकि इन भवनों में डिग्री कॉलेज चल पाएंगे या नहीं,इस पर भी संशय है. जैसे जोशीमठ का जो पॉलिटेक्निक है,वो शहर से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर ढाक में है. जोशीमठ नगर में ही डिग्री कॉलेज है.

बीते दिनों पॉलिटेक्निक में महाविद्यालय का विज्ञान संकाय संचालित करने की बात हुई. लेकिन एक महाविद्यालय के कला संकाय और विज्ञान संकाय में दस किलोमीटर का फासला होगा तो ये संकाय क्या एक ही महाविद्यालय के दो सेटेलाइट संकाय होंगे ?

यह आदेश उत्तराखंड में सरकार के कमजोर नियोजन और दृष्टि को दर्शाता है. एक समय पर सस्ती लोकप्रियता के लिए मंत्री-मुख्यमंत्री स्कूल,कॉलेज, आई.टी.आई, पॉलिटेक्निक जैसे संस्थानों की घोषणा कर देते हैं. घोषणा पूर्ति के लिए ऐसे संस्थान खोल भी दिये जाते हैं.

बरसों-बरस वे बिना भवन और अन्य ढांचागत सुविधाओं के चलते हैं. फिर भवन बन जाता है तो अन्य व्यवस्थाएं न होने के चलते छात्र-छात्राएं इन संस्थानों की ओर रुख नहीं करते और सरकार इन्हें बंद करने का ऐलान कर देती है. जितने धूम-धड़ाके से इनके खोले जाने का ऐलान होता है,उतनी ही खामोशी इन पर ताला जड़ने में बरती जाती है.

चूंकि सरकारी घोषणा की पूर्ति के लिए ये संस्थान खोले जाते हैं तो स्थायी शिक्षकों एवं अन्य स्थायी स्टाफ की नियुक्ति भी इन में कम ही होती है. संविदा, ठेका, आउटसोर्सिंग यही जरिये हैं,जिनसे घोषणवीरों की पूर्ति के लिए खोले गए संस्थानों में नियुक्त की जाती है. संस्थान बंद हो जाते हैं तो इन संस्थानों में अस्थायी तौर पर पढ़ाने के लिए नियुक्त शिक्षक भी संकट में आ जाते हैं.

ऐसा ही इन पॉलिटेक्निकों में पढ़ाने वाले संविदा शिक्षकों के साथ भी हो रहा है.बंद होने जा रहे,इन बारह पॉलिटैक्निकों में 10 से लेकर 18 वर्षों तक संविदा पर पढ़ाने वाले शिक्षकों के भविष्य पर भी, इन पॉलिटैक्निकों की तरह ताला लगने की नौबत आ गयी है.ऐसे लगभग 250 संविदा शिक्षक हैं,जिन पर पॉलिटेक्निक बंदी के उत्तराखंड सरकार के फैसले के चलते बेरोजगारी थोप दी गयी है.

ये संविदा शिक्षक,कोई बैकडोर एंट्री के जरिये विभाग में नहीं आए. बल्कि इनके चयन के लिए पूरी प्रक्रिया सरकार के द्वारा अपनाई गयी और स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति के लिए जिस अर्हता की आवश्यकता होती है,उस अर्हता को ये संविदा शिक्षक पूरा करते हैं.

इन संविदा शिक्षकों को नौकरी से बेदखल करने के लिए सरकार इस कदर कटिबद्ध नजर आती है कि वह हाई कोर्ट के आदेशों को तक नहीं मानती. साल भर पहले स्थायी नियुक्ति होने तक संविदा शिक्षकों के अलग-अलग मामलों में, हाई कोर्ट द्वारा उन्हें बहाल रखने के आदेश जारी किए गए. लेकिन उत्तराखंड सरकार ने हाई कोर्ट के आदेशों को धता बताते हुए,इन संविदा शिक्षकों को बहाल नहीं किया.

इनमें से बहुत सारे मामलों में अदालत के आदेश की अवमानना के वाद, उच्च न्यायालय नैनीताल में चल रहे हैं. उत्तराखंड सरकार लाखों रुपये अवमानना के मुकदमों पर खर्च करने को तैयार है,लेकिन इन संविदा शिक्षकों के रोजगार कायम रखने को तैयार नहीं है !

इन पॉलिटेक्निक संस्थानों को बंद करने के पीछे सरकार का तर्क है कि इनमें छात्र संख्या नहीं है,इसलिए इन्हें बंद किया जा रहा है. लेकिन छात्र संख्या तो इसलिए कम हुई कि कई ट्रेडों में पढ़ाने वाले ही नहीं थे. तो यह दोहरी मार हो गयी. पढ़ाने वाले सरकार ने नियुक्त किए नहीं तो छात्र तकनीकि शिक्षा में बिना अध्यापकों के कैसे रहते ? जब बिना अध्यापकों के छात्र नहीं हैं तो जो अध्यापक हैं,उन्हें छात्र न होने के तर्क के साथ घर बिठाया जा रहा है.

भवन अनुपयोगी हो कर नष्ट न हो जाएँ,इसकी चिंता उत्तराखंड सरकार ने की. लेकिन जिन्होंने इतने वर्षों तक सिर्फ इन भवनों को ही नहीं,उनमें प्रवेश लेने वालों को भी काम का बनाया,उनको उपयोग करके,उनसे किनारा कर लेने में उत्तराखंड सरकार को कोई गुरेज नहीं. लेकिन ऐसा करने में लगता है कि उत्तराखंड सरकार यह भूल गयी कि ये वस्तु नहीं मनुष्य हैं,जिन्हें इस तरह रोजगार से वंचित करके न केवल वे बल्कि उनके परिजन भी संकट में आ जाएँगे.

यह भी हैरान करने वाला है कि सरकार तकनीकि शिक्षा के संस्थानों को बंद करने का अभियान चलाये हुए है.इन संस्थानों में सैकड़ों पद रिक्त हैं,लेकिन शिक्षक नियुक्ति के बजाय ज़ोर इन संस्थानों को बंद करने पर है. एक सरकारी आंकड़े के अनुसार प्रदेश के सरकारी पॉलिटेक्निकों में व्याख्याताओं के सृजित 953 पदों में से 722 पद रिक्त हैं. प्रधानाचार्यों के 77 स्वीकृत पदों में से 62 पद रिक्त हैं.

अन्य विभागों में भी रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ की नहीं जा रही हैं. प्रदेश में सरकारी विभागों में लगभग छप्पन हजार पद रिक्त हैं. 2017 के बाद उत्तराखंड में कोई पी.सी.एस. परीक्षा नहीं हुई. तो इस तरह सरकारी रोजगार का रास्ता स्वयं सरकार बंद कर रही है. लेकिन तकनीकि शिक्षा हासिल करके स्वरोजगार करने का रास्ता भी सरकार बंद करने पर आमादा है.

थोक के भाव तकनीकि संस्थान बंद करना,उत्तराखंड के युवाओं को तकनीकि शिक्षा और तकनीकि दक्षता से वंचित करने का षड्यंत्र मालूम पड़ता है. तो क्या सिर्फ अकुशल बेरोजगारों की भीड़ चाहती है,सरकार ? अपने ही युवाओं से ऐसा बैर क्यूं त्रिवेन्द्र रावत जी ?

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