गोपेश्वर : चमोली जिले जहां देवालयों और मंदिरों के लिये देश दुनिया में प्रसिद्ध है। वहीं जिले में पंच केदारों में से चतुर्थ केदार रुद्रनाथ देशभर में भगवान शिव की स्वयंभू दक्षिणमुखी एकानन मुखाबिंद के दर्शन होते हैं। जबकि अन्य सभी मंदिरों भगवान के लिंग स्वरुप में ही दर्शन होते हैं।
रुद्रनाथ मंदिर चमोली जिले के दशोली विकास खंड में समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह क्षेत्र जहां केदारखंड के अनुसार पौराणिक धार्मिक महत्व का केंद्र है। वहीं प्रकृति ने भी क्षेत्र को सौंदर्य की अनोखी नेमत बख्सी है। मंदिर पहुंचने वाले 20 किमी के पैदल मार्ग में जहां घने जंगल हैं। वहीं मार्ग में मीलों फैले बुग्याल भी यात्रा को दिलचस्प बनाते हैं। रुद्रनाथ यात्रा के मुख्य पडाव पनार से हिमालय की श्रृंखला के दर्शन यात्रियों को अभीभूत करते हैं।
क्या है रुद्रनाथ मंदिर की मान्यता—-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद जब पांडव गोत्र हत्या के पाप से विमुक्त होने केदारखंड में पहुंचे तो भगवान शिव उन्हें दोषी मानते हुए महिष रुप धारण कर भूमिगत हो गये। जिस पर भीम द्वारा भगवान शिव के पृष्ठ भाग को पकड लिया गया। जिससे यहां भगवान शिव के पृष्ठ भाग के दर्शन होते है। ऐसे जी पांडव जब भगवान शिव के खोज में आगे बढे तो मध्यमहेश्वर में मध्य भाग, तुंगनाथ में बाहु, रुद्रनाथ में मुख और कल्पेश्वर में जटाओं के दर्शन हुए। ऐसे में इन सभी शिव तीर्थों में महज रुद्रनाथ में भगवान शिव के मुख के दर्शन होते हैं
कैसे पहुंचे रुद्रनाथ मंदिर—–
पर्यटकों और तीर्थयात्री चमोली-ऊखीमठ मोटर मार्ग पर गोपेश्वर से 3 किमी की सडक दूरी तय कर सगर गांव पहुंचते हैं।यहां से 20 किमी की पैदल दूरी तय कर मंदिर पहुंचा जा सकता है। पैदल मार्ग में ल्वींटी, पनार और पंचगंगा सहित आधा दर्जन बुग्याल स्थित हैं।
बंगाली तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है रुद्रनाथ
रुद्रनाथ धाम की जानकारी को सर्वप्रथम बंगाली सात्यिकार उमा प्रसाद मुखर्जी द्वारा लिपिबद्ध किया गया था। उनकी पुस्तक में रुद्रनाथ धाम के धार्मिक महत्व के साथ ही यहां के सौंदर्य की रोचक जानकारी है। जिसे देखते हुए यहां स्थानीय लोगों के साथ ही बंगाली तीर्थयात्री भारी संख्या में पहुंचते हैं।
जडी-बूटियों के अनुपम संसार का क्षेत्र है रुद्रनाथ
रुद्रनाथ क्षेत्र मध्य हिमालय में स्थिति होने के चलते यहां हिमालयी जडी-बूटियों को अनुपम संसार है। यहां कुटकी, कूट, जटमासी, फेन कमल, ब्रहम कमल, टगर, चोरु जैसी बेसकीमती जडी बूटियों का संसार मौजूद है। जिसके चलते यह क्षेत्र वनस्पति विज्ञानियों के लिये प्रयोगशाला से कम नहीं है