ऋषिकेश: संतान की सलामती के लिए माताएं संकट चौथ का व्रत करती हैं। सबसे खास संकट चौथ माघ के महीने में पड़ती है। इसे संकष्टी चतुर्थी (sankashti chaturthi) के नाम से भी जाना जाता है। जो इस बार 31 जनवरी यानी कल रविवार के दिन पड़ रही है।
इस दिन माताएं सुबह गणेश की पूजा करती हैं और शाम कों चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। इसे गणेश चतुर्दशी व्रत और त्रिकुटी व्रत भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, संकट चौथ के दिन गणेश भगवान के जीवन पर आया सबसे बड़ा संकट टल गया था। इसीलिए इसका नाम संकट चौथ पड़ा।
ऐसे करें पूजन
आचार्य आशीष मृदुल के अनुसार सुबह स्नान के साथ लाल रंग का वस्त्र धारण करना श्रेयस्कर है। श्री गणेश भगवान के साथ लक्ष्मी जी की भी मूर्ति रखकर पूजन करना चाहिए। दिनभर निर्जला व्रतबके बाद रात को चांद को अर्घ्य देकर विधि विधान से श्री गणेश जी की पूजा करना चाहिए। किसी प्रकार का नमक नहीं खाना चाहिए। फलाहार उत्तम होता है। 21 दूर्वा और बेशन के लड्डू जरूर चढ़ाने चाहिये। पूजन से संतान की लंबी आयु होती है और साथ ही संतान की तरक्की में हो रही बाधाएं भी दूर होती हैं।
संकट चौथ व्रत कथा
कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया। उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना।
गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए, लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।
स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें ।
इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी। तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं ।।