गौरैया विशेष: 1960 में चीन को लगा था गौरैया का ‘श्राप’, जल्द आ सकती है भारत की बारी

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देहरादून: प्रकृति में एक दूसरे को संतुलन (बैलेंस) करने की व्यवस्था पहले से की हुई है. लेकिन इंसान का स्वार्थ अक्सर प्रकृति में असंतुलन पैदा कर देता है. टिड्डी दलों का आतंक अलग उत्तर भारत के किसानों की चिंता बना हुआ है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक भारत में टिड्डीयों का ये 26 साल का सबसे बड़ा हमला है. अब ऐसे में सवाल यह है कि क्या इस समय अब गौरेया की कमी को महसूस कर रहे हैं ?

टिड्डी का दल

गौरेया की नस्ल को खत्म करने का दिया था आदेश

साल 1950 से देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था. जिससे निपटने के लिए 1958 में People’s Republic of China के नेता माओ जेडोंग (Mao Zedong), जिसे माओत्सेतुंग के नाम से भी जाना जाता है, ने एक मुहिम शुरू की Four Pests Campaign. इस मुहिम के तहत नुक़सान पहुंचाने वाले 4 जीव-जंतुओं को मारने का फैसला हुआ- चूहे, जिनसे प्लेग फैलता है, मच्छर क्योंकि वे मलेरिया फैलाते हैं और मक्खियां जो कि हैजा फैलाती हैं. इनके साथ चौथी थी गौरैयामाओ जेडोंग ने ये कहकर मारने का फरमान सुना दिया था कि वह लोगों के अनाज खा जाती है. कहा गया कि गौरैया किसानों की मेहनत बेकार कर देती है और सारा अनाज खा जाती है.

चीन में उस समय के तथाकथिक क्रांतिकारियों ने जनता के बीच में इस अभियान को एक आंदोलन की तरह फैला दिया. लोग भी बर्तन, टिन, ड्रम बजा-बजाकर चिड़ियों को उड़ाते. लोगों की कोशिश यही रहती कि गौरैया किसी भी हालत में बैठने न पाए और उड़ती रहे. बस फिर क्या था, अपने नन्हें परों को आखिर वो गौरैया कब तक चलाती. ऐसे में उड़ते-उड़ते वह इतनी थक जाती कि आसमान से सीधे जमीन पर गिर कर मर जाती. कोई गौरैया बच न जाए, ये पक्का करने के लिए उनके घोंसले ढूंढ़-ढूंढ़ कर उजाड़ दिए गए, जिनमें अंडे थे उन्हें फोड़ दिया गया और अगर किसी घोंसले में चिड़िया के बच्चे मिले तो उन्हें भी इंसानों की क्रूरता का शिकार होना पड़ा.

चीन में गौरैया को खूब मारा जा रहा था

गौरेया को मारने पर मिलता इनाम

बड़ों के साथ बच्चे भी खूब खुशी से गौरैया के सामूहिक कत्ल का हिस्सा बनने लगे. इसके पीछे एक वजह ये भी थी कि जेडोंग ने गौरैया मारने पर इनाम रखा था. जो जितनी ज्यादा गौरैया मारता, उसे उसी हिसाब से इनाम दिया जाता. हत्यारों का सार्वजनिक सभा में सम्मान भी हुआ करता. यहां तक कि संस्थाएं, स्कूल और कॉलेजों में कंपीटिशन होता और उन्हें मेडल दिया जाता था, जो ज्यादा से ज्यादा गौरैया मारे. Radio Peking के मुताबिक गौरैया मारने के अभियान में देश के लगभग 3 लाख लोगों ने हिस्सा लिया.

महज दो सालों में ही अप्रैल 1960 आते-आते लोगों को इसका बेहद खौफनाक अंजाम भुगतना पड़ा. दरअसल, गौरैया सिर्फ अनाज नहीं खाती थी, बल्कि उन कीड़ों को भी खा जाती थी, जो अनाज की पैदावार को खराब करने का काम करते थे. गौरैया के मर जाने का नजीता ये हुआ कि धान की पैदावार बढ़ने के बजाए घटने लगी. माओ को समझ आ चुका था कि उनसे भयानक भूल हो गई है. उन्होंने तुरंत ही गौरैया को Four pests से हटने के आदेश जारी कर दिए. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. टिड्डी और दूसरे कीड़ों की आबादी तेजी से बढ़ी. गौरैया तो पहले ही मारी जा चुकी थीं, जो उनकी आबादी पर लगाम लगाती.

किड़े खाती गौरैया

कीड़ों को मारने के लिए तरह-तरह की दवाओं का इस्तेमाल किया जाने लगा, लेकिन पैदावार बढ़ने के बजाय घटती ही रही. जिसके बाद आगे चलकर इसने एक अकाल का रूप ले लिया, जिसमें करीब 2.5 करोड़ लोग भूखे मारे गए. चीन के पत्रकार Yang Jisheng ने इस दुर्घटना पर एक किताब Tombstone लिखी थी, जो चीन में ही बैन कर दी गई. इस किताब में पत्रकार ने जिक्र किया है कि कैसे भूख से मरते लोग अपनों की लाशों को ही खाने लगे थे.

माओ जेडोंग को अपनी भूल समझने में बहुत देर हो गई थी, लेकिन हमें तो यह पता है कि गौरैया लिए कितनी अहम है.  भारत में भी पक्षी वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले कुछ सालों में गौरैया की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट आई है. लगातार घटती इसकी संख्या को अगर हमने गंभीरता से नहीं लिया, तो वह दिन दूर नहीं, जब गौरैया हमेशा के लिए हमसे दूर चली जाएगी.

ऐसे बच सकती हैं गौरैया

हमारी छोटी-सी कोशिश गौरैया को जीवनदान दे सकती है. सबसे पहली बात कि अगर वह हमारे घर में घोंसला बनाए, तो उसे बनाने दें. हम नियमित रूप से अपने आंगन, खिड़कियों और घर की बाहरी दीवारों पर उनके लिए दाना-पानी रखें. गर्मियों में न जाने कितनी गौरैया प्यास से मर जाती हैं. इसके अलावा उनके लिए कृत्रिम घर बनाना भी बहुत आसान है और इसमें खर्च भी न के बराबर होता है. जूते के डिब्बों, प्लास्टिक की बड़ी बोतलों और मटकियों में छेद करके इनका घर बना कर उन्हें उचित स्थानों पर लगाया जा सकता है. इंटरनेट पर खोजेंगे, तो गौरैया के लिए घर बनाने के बड़े आसान तरीके आपको आराम से मिल जाएंगे. एक बात और, गौरैया को कभी नमक वाला खाना नहीं डालना चाहिए, नमक उनके लिए हानिकारक होता है. प्रजनन के समय उनके अंडों की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए.

गौरैया से हमारा बचपन का रिश्ता है. अंग्रेजी में उसका नाम ही है ‘हाउस स्पैरो’ यानी घर में रहने वाली चिड़िया. उसे हमारा बस थोड़ा-सा प्यार और थोड़ी-सी फिक्र चाहिए, रहने को थोड़ी-सी जगह चाहिए…हमारे घर में और हमारे दिल में.

गौरेया पर कवित्री कलावंती की लिखी कविता

गौरैया भटकती है,
तलाश में आश्रय की।
पुराने पीपल पर
कौओं ने बसेरा कर लिया है
नए पर गिद्धों ने
वह कहाँ जाए
कहाँ अपना घोसला बनाए
लोग अब घरों में
बिल्लियाँ पालने लगे हैं


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